नमस्कार दोस्तों, आप सभी का हमारे नए आर्टिकल में स्वागत है। दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक बेहद महत्वपूर्ण और ताज़ा अपडेट देने जा रहे हैं, जो भारतीय आईटी सेक्टर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ फैसलों से जुड़ा है। यह खबर न सिर्फ़ आईटी कंपनियों के लिए बल्कि उन सभी के लिए अहम है, जिनका काम अमेरिका से जुड़ा हुआ है।
दोस्तों, जैसा कि आप जानते हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले कुछ समय से अलग-अलग देशों पर टैरिफ़ (शुल्क) लगाने के फैसले ले रहे हैं। भले ही ये टैरिफ़ सीधे भारतीय आईटी सेक्टर को टारगेट नहीं कर रहे हों, लेकिन इनका असर ऐसे हो रहा है जैसे क्रिकेट के मैच में अचानक पिच पर आकर गिरा कोई बेकाबू गेंद — जो सभी को चौंका दे और खेल की रफ्तार धीमी कर दे। सिर्फ़ टैरिफ़ की धमकी ही कंपनियों के फैसलों को धीमा कर रही है। पहले क्वार्टर में ही हर बड़ी भारतीय आईटी कंपनी से इस विषय में सवाल किए गए। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) के सीईओ ने साफ कहा कि “निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई सुधार नहीं दिख रहा” और तब तक उम्मीद नहीं है जब तक व्यापारिक समझौतों, ख़ासकर चीन के साथ, पर स्पष्टता न हो।
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इंफोसिस के सीएफओ जयेश सांगराजका ने भी माना, व्यापारिक माहौल टैरिफ़ और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण ठहराव में है। क्लाइंट discretionary खर्च में सतर्क हैं, जिससे निर्णय लेने में देरी हो रही है। आप सभी को बताते चले की, अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ़ युद्धविराम को 90 दिन के लिए बढ़ा दिया गया है, लेकिन फिर भी क्लाइंट्स नए प्रोजेक्ट को मंजूरी देने से बच रहे हैं। एक बड़े आईटी अधिकारी के मुताबिक, “जहां काम चल भी रहा है, वहां समयसीमा बढ़ाने की मांग हो रही है ताकि तुरंत भुगतान कम हो। ज़रूरी काम तो चल रहा है, लेकिन डिस्काउंट की मांग और ऑटोमेशन व AI के इस्तेमाल की शर्तें बढ़ रही हैं।
HfS रिसर्च के सर्वे के अनुसार, 69% अमेरिकी कंपनियां फिलहाल खर्च में कटौती कर रही हैं और 83% रीशोरिंग (काम को वापस अमेरिका लाने) या कॉन्ट्रैक्ट बदलने से पहले AI और ऑटोमेशन का रुख कर रही हैं। HfS के अध्यक्ष सौरभ गुप्ता ने कहा, भले ही कागज़ पर आईटी सेवाओं पर टैरिफ़ का सीधा असर नहीं है, लेकिन डोमिनो इफ़ेक्ट असली है। जब आपके क्लाइंट दबाव में होंगे, तो आपको भी असर महसूस होगा।
दोस्तों, यहां असली मामला कोड पर टैरिफ़ का नहीं, बल्कि भरोसे पर टैरिफ़ का है। और इस समय भरोसा बहुत कम है। आईटी इंडस्ट्री विश्लेषक पारीख जैन का कहना है कि कुछ सर्विस प्रोवाइडर्स के क्लाइंट यह पूछ रहे हैं कि अगर ट्रंप ने सेवाओं पर टैरिफ़ लगाया तो विकल्प क्या होंगे। यह संभावना पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। साथ ही, ट्रंप पहले ही गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को अमेरिका में छंटनी और भारत में भर्ती करने पर निशाना बना चुके हैं। इसलिए कंपनियां नए ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) की घोषणा करने में भी सावधानी बरत रही हैं, ताकि गलत संदेश न जाए।
इंडस्ट्री के कई दिग्गज मानते हैं कि ट्रंप का सेवाओं पर टैरिफ़ लगाना दोनों देशों के लिए नुकसानदेह होगा, लेकिन उनकी अनपेक्षित चालों को देखते हुए कोई भी इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर रहा। डॉइचे बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम, मलेशिया और फिलीपींस जैसे देश वैकल्पिक आईटी हब के रूप में उभर रहे हैं, लेकिन भारत को पूरी तरह रिप्लेस करना लगभग असंभव है।
दोस्तों, फिलहाल भारतीय आईटी सेक्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती टैरिफ़ नहीं, बल्कि यह इंतज़ार है कि ट्रंप आगे क्या कदम उठाते हैं। सबकी निगाह इस टिक-टिक करती घड़ी पर है, और सभी चाह रहे हैं कि यह अलार्म बजने से पहले ही मामला सुलझ जाए। यदि आपके पास भी इस विषय से जुड़ी कोई जानकारी या राय है, तो आप हमें ज़रूर बताएं। आपकी राय इस चर्चा को और समृद्ध बनाएगी।