नमस्कार दोस्तों, आप सभी का हमारे नए आर्टिकल में स्वागत है। दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। यह वही प्रक्रिया है जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है, और इस बार इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में चर्चा हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
दोस्तों, जैसा कि आप जानते हैं, मतदाता सूची किसी भी चुनाव की सबसे अहम नींव होती है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की SIR प्रक्रिया को “मतदाता-हितैषी” बताया है। कोर्ट का कहना है कि इस बार पहचान के लिए ज्यादा दस्तावेज मान्य किए गए हैं, जिससे लोगों के पास पहले से ज्यादा विकल्प होंगे।
पहले सिर्फ 7 तरह के दस्तावेज स्वीकार किए जाते थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़ाकर 11 कर दी गई है। कोर्ट ने साफ कहा कि यह कदम लोगों को चुनाव में शामिल करने वाला है, न कि उन्हें बाहर करने वाला।
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एन्यूमरेशन फॉर्म पर चर्चा
आप सभी को बताते चलें कि अदालत में एक और मुद्दा उठा — क्या कोई एन्यूमरेशन फॉर्म, जो पहले से मौजूद वैधानिक फॉर्म को शामिल कर ले, गलत होगा या ज्यादा समावेशी माना जाएगा? इस पर भी बेंच ने सवाल उठाए और विचार किया।
याचिकाकर्ता की आपत्ति
दोस्तों, याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग (ECI) पर नागरिकता प्रमाण को लेकर अपना रुख बदलने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि अब यह मान लिया गया है कि हर कोई बहिष्कृत है, जब तक वह खुद को साबित न कर दे। सिंघवी जी का सुझाव था कि SIR को दिसंबर से शुरू किया जाए और एक साल का समय दिया जाए, ताकि सभी मामलों को ठीक से देखा जा सके। उन्होंने यह भी सवाल किया कि बिहार में जुलाई में यह प्रक्रिया क्यों शुरू की जा रही है, जबकि अरुणाचल या लक्षद्वीप जैसे राज्यों में चुनाव बाद में हैं।
SIR क्यों हो रहा है?
दोस्तों, SIR 2003 के बाद पहली बार इतनी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसका मकसद बिहार के अक्टूबर–नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को सही और साफ बनाना है।
इस प्रक्रिया में 2003 की मतदाता सूची में नाम न होने वाले लोगों को जन्मस्थान का प्रमाण और भारतीय नागरिकता का स्वयं-घोषणा पत्र देना होगा।
विपक्ष की चिंता
आप सभी को बताते चलें कि विपक्ष का कहना है कि इस प्रक्रिया में बिहार के करीब 2 करोड़ मतदाता अपने नाम खो सकते हैं। उनका आरोप है कि फॉर्म-6 में नागरिकता प्रमाण अनिवार्य नहीं है, केवल एक घोषणा, जन्मतिथि और पता ही मांगा जाता है, जिससे गैर-नागरिक भी शामिल हो सकते हैं।
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और समावेशी है। आयोग का दावा है कि “कोई भी योग्य नागरिक मतदाता सूची से बाहर नहीं होगा।” दोस्तों, जैसा कि आप देख सकते हैं, SIR को लेकर बहस तेज है — एक ओर इसे मतदाता-हितैषी बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे संभावित बहिष्करण की प्रक्रिया मान रहा है। आने वाले समय में यह देखने वाली बात होगी कि यह कदम वाकई सभी को शामिल करता है या नहीं।